सरदार जस्सा सिंह धीमान (रामगढ़िया)
स्वर्ण जातीय रत्न
सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया (1723-1803) 18वीं सदी के एक प्रमुख सिख योद्धा और रामगढ़िया मिसल के संस्थापक थे। उनका जन्म लाहौर के पास इचोगिल (या अमृतसर के निकट गूगा/सूर सिंह) में एक तारखान सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता ज्ञानी भगवान सिंह और दादा हरदास सिंह गुरु गोबिंद सिंह के हजूरी सिख थे, जो बाबा बंदा सिंह बहादुर के साथ युद्धों में शहीद हुए। जस्सा सिंह का मूल नाम जस्सा सिंह ठोकर (बढ़ई) था, जो बाद में रामगढ़िया पड़ा।
प्रमुख योगदान:
रामगढ़िया मिसल की स्थापना: 1748 में, जस्सा सिंह ने रामरौणी किले को जीता, जिसका नाम बदलकर रामगढ़ रखा। यहीं से वे "रामगढ़िया" कहलाए। उन्होंने रामगढ़िया मिसल को एक शक्तिशाली सिख जत्था बनाया।
दिल्ली विजय: 11 मार्च 1783 को, जस्सा सिंह ने बाबा बघेल सिंह और अन्य सिख नेताओं के साथ मिलकर दिल्ली के लाल किले पर निशान साहिब फहराया, जो सिख इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना थी।
मुगलों और अफगानों के खिलाफ युद्ध: जस्सा सिंह ने नादिर शाह, अहमद शाह अब्दाली और मुगल सूबेदारों के खिलाफ कई युद्ध लड़े। उन्होंने खालसा पंथ की हर प्रमुख मुहिम में हिस्सा लिया, जिसमें अदीना बेग के साथ मिलकर अफगानों को हराना शामिल है।
सिख एकता: आपसी विवादों के बावजूद, जस्सा सिंह ने सिख मिसलों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रणनीतिक कुशलता और नेतृत्व ने सिखों को विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ मजबूत किया।
व्यक्तित्व और विरासत:
बचपन से योद्धा: जस्सा सिंह ने छोटी उम्र में शस्त्र विद्या सीखी और अपने परिवार की शहादत की परंपरा को आगे बढ़ाया।
निडर और बुद्धिमान: वे न केवल युद्ध कौशल में निपुण थे, बल्कि रणनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी बेजोड़ थे।
सिख इतिहास में स्थान: उनकी बहादुरी और नेतृत्व के किस्से सिख समुदाय में आज भी प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी जयंती पर सिख समुदाय उन्हें श्रद्धांजलि देता है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि:
उनके चार भाई थे—जय सिंह, खुशाल सिंह, माली सिंह, और तारा सिंह। पिता की मृत्यु के बाद वे परिवार के मुखिया बने। उनके परिवार का गुरु घर से गहरा नाता था, जिसने उनकी देशभक्ति और धर्मनिष्ठा को आकार दिया।
निधन:
जस्सा सिंह का निधन 1803 में हुआ, लेकिन उनकी वीरता और सिख पंथ के लिए योगदान अमर हैं। वे सिख इतिहास में एक महानायक के रूप में याद किए जाते हैं।
उनकी जयंती कब होती है
सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया की जयंती 5 मई को मनाई जाती है। उनके जन्म वर्ष को लेकर कुछ मतभेद हैं, लेकिन आमतौर पर उनका जन्म 5 मई 1723 माना जाता है। इस दिन सिख समुदाय में उनकी वीरता और योगदान को याद किया जाता है।
क्या वे विश्वकर्मा वंश के महान योद्धा हैं
हाँ, सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया को विश्वकर्मा वंश (या तारखान धीमान समुदाय) से जोड़ा जाता है, जो सिख इतिहास में अपनी शिल्पकला, बढ़ईगिरी और योद्धा परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। वे धीमान (तारखान) सिख परिवार में जन्मे थे, और उनके परिवार का पेशा परंपरागत रूप से ठोकर (बढ़ई) का था, जिस कारण उन्हें शुरू में "जस्सा सिंह ठोकर" कहा जाता था।
विश्वकर्मा वंश और योद्धा परंपरा:
विश्वकर्मा समुदाय: विश्वकर्मा वंश में धीमान (तरखान), लोहार, जांगिड़ मालवीय जैसे शिल्पकार समुदाय शामिल हैं, जो अपनी बुद्धि शिल्प कौशल के साथ-साथ युद्ध कौशल में भी निपुण थे। जस्सा सिंह इस समुदाय के एक महान प्रतिनिधि थे।
योद्धा के रूप में ख्याति: जस्सा सिंह ने अपनी वीरता, रणनीतिक बुद्धिमत्ता और नेतृत्व क्षमता से सिख इतिहास में एक महान योद्धा के रूप में स्थान बनाया। उन्होंने रामगढ़िया मिसल की स्थापना की और मुगलों, अफगानों जैसे शक्तिशाली दुश्मनों के खिलाफ युद्ध लड़े। उनकी दिल्ली विजय (1783) और अन्य युद्धों में भूमिका उनकी युद्धकुशलता का प्रमाण है।
सिख पंथ में योगदान: विश्वकर्मा वंश से होने के बावजूद, जस्सा सिंह ने सिख पंथ की एकता और खालसा की रक्षा के लिए कार्य किया, जिससे वे सभी सिखों के लिए प्रेरणा स्रोत बने।
इस प्रकार, सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया न केवल विश्वकर्मा वंश के गौरवशाली योद्धा थे, बल्कि सिख इतिहास के एक महान नायक भी थे। उनकी बहादुरी और समर्पण ने उन्हें "विश्वकर्मा वंश के महान योद्धा" के रूप में अमर कर दिया।